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bhagawati vyas

Abstract

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bhagawati vyas

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ऊँचे ऊँचे दाम हैं

ऊँचे ऊँचे दाम हैं

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सजे हुए मेले पुस्तक के, ऊँचे ऊँचे दाम हैं।

विक्रय के अंदाज निराले, आते कम ये काम हैं।।


पाठ्य पुस्तकें बिकती केवल, बाँटें है सरकार भी।

आकर्षण घटता है नित दिन, घाटे में व्यापार भी।

कई प्रकाशन घाटे में तो, कई हुए गुमनाम हैं।।

सजे हुए मेले पुस्तक के, ऊँचे ऊँचे दाम हैं।।


कागज़ और छपाई मँहगी, नहीं विषय की माँग ही।

पढ़ने की चाहत क्या छूटी , घुली कुँए में भांग ही।

बदली आज समय ने करवट, बदले दृश्य तमाम हैं।।

सजे हुए मेले पुस्तक के, ऊँचे ऊँचे दाम हैं।।


नज़रें टिकी हुई पर्दे पर, बूढ़े, भले जवान हो।

लेखन पठन यहीं साजे है, शैशव खींचे तान हो।

चाहा अनचाहा पाते तो, बदले से अंजाम हैं।।

सजे हुए मेले पुस्तक के, ऊँचे ऊँचे दाम हैं।।


व्यापारिक है पस्त प्रकाशन, घाटा हुआ समाज को।

नित दिन घटता जब परमारथ, कौन विचारे आज को।

तकनीकी संग्रह के सम्मुख, पोथी बिके छदाम हैं।।

सजे हुए मेले पुस्तक के, ऊँचे ऊँचे दाम हैं।।


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