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bhagawati vyas

Abstract

4.5  

bhagawati vyas

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धनवान

धनवान

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वैभव की गोदी में पलता,

वह धनवान समझ लो !


चाँदी का चम्मच मुँह में हो,

सुविधाओं का पलना !

ख़ुशियाँ दासी बनकर बैठी,

फिर फूलों सा खिलना !

पवन छेड़ती सरगम आँगन,

बस यशगान समझ लो !!


दास दासियाँ, नौकर चाकर,

पीछे भागे आते !

सोना चाँदी बंगला मोटर,

मान बढाये जाते !

शीश झुके हैं जिसके आगे,

यह अधिमान समझ लो !!


ऊँची शिक्षा, उच्च रहन हो,

दर्प जहाँ पलता हो !

जहाँ प्रशंसा मन भाए है,

बस विरोध खलता हो !

करुणा के संग दान दिखावा,

सच अभिमान समझ लो !!


आँखों में इक चमक राजसी,

पैर धरा कब ठहरे !

जहाँ सुरक्षा का घेरा हो,

कदम कदम पर पहरे !

आसमान मुट्ठी में रखते,

नित गुणगान समझ लो !


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