सर्दी / शीत
सर्दी / शीत


ठिठुरन जब जब नींद उड़ाती,
पैर पसारे शीत है !!
दिन लगते हैं साँझ ढले से,
मरी मरी सी धूप जो !
रातें भी कोहरे में सिमटी,
दिखे न अंधे कूप जो !
है अलाव में अगन ज़रा पर,
दांत बजे, संगीत है !!
दूध जलेबी सूखा मेवा,
खूब लगाते भोग कुछ !
सुविधाओं से अटे पड़े हैं,
पाते हैं मधु भोग कुछ !
चना चबेना, सूखी रोटी,
कुछ के लिये पुनीत है !!
सैर सपाटे, भ्रमण करें कुछ,
जीवन का आनंद ले !
कुछ श्रमदानी जुटे सतत हैं,
अधरों पर मधु छंद ले !
जीवन है जी सफर सुहाना,
जो सबका ही मीत है !!
ऋतुएं आती जाती रहती,
मौसम बदले रंग है !
पल की कीमत जिसने जानी,
हाथ उसी के चंग है !
बस उमंग की डोर थाम लो,
फिर मन कब भयभीत है !