गीत.....सवैया तर्ज
गीत.....सवैया तर्ज
देश हितैषी सर्व समाहित, पावन चंदन होत सखी री ।
उर्वर होती मानस मनसा, कर्म धरा को जोत सखी री ।।
देश हितैषी सर्व....
जब-जब जीवन कल्पित होती, संचय दुख का होना होती ।
डरकर नैया पार न होती, वन में सिय को रोना होती ।।
मन को मन से हर्षित करके, दुख को सुख से धोना होती ।
खिलती कलियां यह भी कहती, कांटे बनकर चुभना होती ।।
सुख में जीवन सबको जीना, सुख ही अब सुहौत सखी री....
देश हितैषी सर्व....
व्याकुल कैसे जीवन यह तो, सकुचे मन अकुलाए रही
है।
भव सागर से पार करा कर, हमको नित ही बुलाए रही है ।।
सुंदर-सुंदर सर्जन से कर, लेखन भी मनुहार सखी री...
मिल जुल कर सब साथ रहें तो, पावन यह संसार सखी री...
देश हितैषी सर्व....