मॉं काली स्तुति
मॉं काली स्तुति
नमामि मात अंगिका,प्रखण्ड खण्ड-खण्डिका ।
कतार रक्त का बहे, विभक्त मुण्ड चण्डिका ।।...
कुपाप नाशिनी जयी,जटाल हो जटालिका ।
सुगंध से सुवासिनी, व गंध गो गमालिका ।।
कि धूल-धूल फूल सी,भभूत भाल साजती ।
ममुण्डमाल शोभिता,लगी स्वयं कुरुंबिका ।।(१)
नमामि मात अंगिका.......
धमद्धमद्धमद्ध हो ,मृदंग नाद कालिका ।
कि भौंह भी तनी हुई,व दीर्घ नेत्र नायिका ।।
त्रिलोक है भयाकुली,ननृत्य को हि देखके ।
समक्ष रक्तबीज के,सहस्त्र शीश मालिका ।।(२)
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sp; नमामि मात अंगिका....
पिपासिनीन रक्त की,सजी प्रहस्त कुंभिका ।
महान दृश्य देख के,डरी यमी यमानिका ।।
विनाश दैत्य का हुआ ,कि अंग भंग हो रहा ।
विदेह का व हाड़ का,पहाड़ पट्टपालिका ।।(३)
नमामि मात अंगिका....
सुदूर दूर द्वेष हो ,निरीह की निवासिका ।
सरंध्र हो रही धरा,सुवास धूल धोलिका ।।
प्रसार शांति का हुआ,अप्रेम आह अंतिका।
धरें सभी समत्व को,ममत्व मात मंत्रिका ।।(४)
नमामि मात अंगिका....