अब तुम्हे मैं पुकारू मेरी हीर कह कर ! अब तुम्हे मैं पुकारू मेरी हीर कह कर !
निकलूं जब किसी मंजिल की ओर हर भोर मेरी उत्साहित कर दो निकलूं जब किसी मंजिल की ओर हर भोर मेरी उत्साहित कर दो
साथ में बैठकर भोजन ग्रहण करते, सुख-दुःख में सब साथ निभाते। साथ में बैठकर भोजन ग्रहण करते, सुख-दुःख में सब साथ निभाते।
ज्ञान के कुंजी को उस दृढ़ अंगों में समाहित करना ज्ञान के कुंजी को उस दृढ़ अंगों में समाहित करना
खिलती कलियां यह भी कहती, कांटे बनकर चुभना होती खिलती कलियां यह भी कहती, कांटे बनकर चुभना होती
बनी रहे हर कृति की लय न हो कभी कहीं कोई क्षय बनी रहे हर कृति की लय न हो कभी कहीं कोई क्षय