पथिक
पथिक
पथ मेरा प्रकाशित कर दो
नई उमंग नई कलियों से
प्रकाश की ऐसी राह बना दो
जन-जन गुजरे मेरी गलियां से।
मैं नादान अजनबी इस जग की
मुझे हर पल अपनापन दो
मैं रहूं हर जन के अंदर
तुम ऐसा जग जीवन दो।
निकलूं जब किसी मंजिल की ओर
हर भोर मेरी उत्साहित कर दो
कदम मेरे ना रुके मुड़े कभी
मंजिल में यूं समाहित कर दो।
निगाहें ढूंढे तुझे जब राहों में
एक बोल से मुझे बुला लेना
आसरा मेरा बनाए रखें यूं
हर नादानी मेरी भुला देना।
पथ मेरा तुम उजागर कर दो
अंधेरे के जुगनू की तरह यूं
उसे देखकर आगे बढूं मैं
मिले मंजिल तो आभार करूं।