संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार
जीवन का था वह दौर सुहाना,
होता था खुशियों का खजाना।
मिल जुल कर सब रहते थे,
किसी से बैर ना रखते थे।
बड़ों का आदर करता थे सब,
माला में मोती से सजते थे सब।
साथ में बैठकर भोजन ग्रहण करते,
सुख-दुःख में सब साथ निभाते।
संयुक्त परिवार की है यह अजब कहानी,
चोट लगे एक को, आए सबकी आँखों में पानी।
दादा-दादी की छाया में रहकर,
बच्चे बढ़ते थे निर्भय होकर।
सद्भावना से बच्चे होते थे परिपूर्ण,
समाहित ना होता था कोई अवगुण।
दिल चाहता है फिर से वही जमाना हो,
बेमौसम बरसात हो-बेफिक्री का जमाना हो।
यूँ ही मिल जुल कर रहें फिर से हम,
अकेलेपन का कहीं नामोनिशान ना हो।