अंधेरा छंटेगा
अंधेरा छंटेगा
एक ढलती हुई शाम एहसास कराती है,,
कभी एक दिन के डूब जाने का,
तो कभी एक नव दिवस की ओर अग्रसर होने का।।
हर ढलती शाम के संग
मैं भी कुछ और रिक्त सी हो जाती हूँ,,
जितना आगे स्वयं को बढ़ाती हूँ
बीते लम्हों की यादों संग दोगुनी पीछे हो जाती हूँ।।
बीते बचपन के लम्हें मुँह चिढ़ाते निकल जाते हैं,,
हर गुजरते वक्त के संग बिखरती हुई सी जाती हूँ।।
टेक लगा कुर्सी की,
फुर्सत से चाय की घूंट का लुत्फ उठाना चाहती हूँ,,
भागदौड़ भरी जिंदगी में सुकून तलाशती रह जाती हूँ।।
ढलते सूर्य की लालिमा संग तिमिर मिटाना चाहती हूँ,,
शांत लहरों सी शामों में धीमा संगीत घोलना चाहती हूँ।।