STORYMIRROR

Shilpi Goel

Abstract Inspirational

4  

Shilpi Goel

Abstract Inspirational

जीवन-चक्र

जीवन-चक्र

1 min
259

बाल मन

निर्भय

निश्छल स्वरूप

ना देखे

ठंडी छाँव

ना देखे

जलती धूप

पावन सा

मन का

हर कोना

कभी

हँसना

कभी

रोना

बड़े होते-होते

सब गुण

खो जाते

अजब से

यह दुनिया के

मोह नाते

हल्के हल्के

दबे पाँव

जीवन की

होती छाँव

बुढ़ापा है

ऐसा पड़ाव

ना इच्छा

जगती

समाप्त होता

जाता चाव

जीवन चक्र

घूमता ऐसे

लौटा हो

बचपन जैसे

अकेले आए

अकेले जाना

चंद पलों का

यह सफ़रनामा

कमाई दुआएँ

जाएंगी साथ

बाकि तो

रहते हैं बस

खाली हाथ



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract