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Sharda Kanoria

Abstract

4.4  

Sharda Kanoria

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मन‌ का रेडियो

मन‌ का रेडियो

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मन का रेडियो बजता जब-जब..

खो जाना मन चाहता, बचपन में तब तब।

काश लौट आए बचपन दीवाना,

वही मस्ती वही अल्हड़पन बचकाना।

मन का रेडियो बजता जब-जब...


लगता बांह फैलाए,

उडुं आसमां तक,

गले लग जाऊं चांद सितारों के,

गुम हो रहुं उन नजा़रों में।

मन का रेडियो बजता जब-जब...


चाहुं हर मनचाहे जज्बात हो पूरे,

ना कोई गम मुझे छू ले।

यूं ही हंसते गाते बीते हर पल,

जीवन बन जाए खूबसूरत गज़ल।

मन का रेडियो बजता जब जब...


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