STORYMIRROR

Sharda Kanoria

Abstract

4  

Sharda Kanoria

Abstract

मुकम्मल कहां जिंदगी

मुकम्मल कहां जिंदगी

1 min
412

कुछ यादें किताबों में सिमट गई।

 कुछ अरमान दिल में रह गए।

कुछ दिल की गहराई को छू गई तो, 

 कुछ ख्वाहिशों ने दम ही तोड़ दिया।

 मुकम्मल कहां होती है जिंदगी 

अधूरे सपने लेकर चलती है जिंदगी।


 खट्टा मीठा सा सफर है यह 

कुछ पाना है तो कुछ खोना है

 पर यह सच है

 अंत है तो आरंभ भी है।

मुकम्मल कहां होती है जिंदगी..... 


एक नया साहस, एक नया विश्वास।

 नई उर्जा लिए ये सवेरा 

 नई आस झांक रही खिड़की से।

उम्मीदों को जगा रही।

 मुट्ठी में थाम लो इसे

 यही है किरण रोशनी की।

मुकम्मल कहां होती है जिंदगी.....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract