जिंदगी...
जिंदगी...
यूं फासलों में बंध के रह गई है जिंदगी ,
डर लगता है अब तो कहीं आ ना मिले जिंदगी ...
यादों में हम गुजारा भी कर लेते अब तो ,
पर रोज सामने आ के जान ले लेती है जिंदगी ...
यूं ही लिखते है कुछ लिखकर मिटा देते है ,
कहीं किसी ने पढ़ लिया तो रुसवा ना हो जाये जिंदगी ...
हम नये है इस राह गुजर पर अक्सर चोट खाते है ,
जब भी दर्द उठता है सीने में तो तुझे कोसते है जिंदगी ...
ये ना तो मेरी शायरी है नाही गजल कहना ,
फूट फूटकर रोया दिल तो कागज पर उतर गई जिंदगी ...
डूबते सूरज को देख के अब हम भी हंस देते है ,
जख्म भर जायेंगे तो नई सुबह लायेगी जिंदगी ...
