STORYMIRROR

Manisha Wandhare

Abstract

4  

Manisha Wandhare

Abstract

जिंदगी...

जिंदगी...

1 min
252

यूं फासलों में बंध के रह गई है जिंदगी ,

डर लगता है अब तो कहीं आ ना मिले जिंदगी ...


यादों में हम गुजारा भी कर लेते अब तो ,

पर रोज सामने आ के जान ले लेती है जिंदगी ...


यूं ही लिखते है कुछ लिखकर मिटा देते है ,

कहीं किसी ने पढ़ लिया तो रुसवा ना हो जाये जिंदगी ...


हम नये है इस राह गुजर पर अक्सर चोट खाते है ,

जब भी दर्द उठता है सीने में तो तुझे कोसते है जिंदगी ...


ये ना तो मेरी शायरी है नाही गजल कहना ,

फूट फूटकर रोया दिल तो कागज पर उतर गई जिंदगी ...


डूबते सूरज को देख के अब हम भी हंस देते है ,

जख्म भर जायेंगे तो नई सुबह लायेगी जिंदगी ...



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract