ये कैसे दिल को लिख देती है...
ये कैसे दिल को लिख देती है...
कैसे दिल को लिख देती है
ये रोती कभी हसती है
एक एक शब्दों कों पिरोंके
लडीं कविता की बन जाती है ...
ये कैसे दिल को लिख देती है ...
खामोंश हुई धडकनों कों होले सें
चुमकर जगाती है
अब तक ना कही किसी से जो बात
ओठों से कागजपर उतारती है...
ये कैसे दिल को लिख देती है ...
इससे दोस्ती जब होती है
अकेलेपण की खलल ना रहती है
बहुत प्यार करते है इससे
इसकी दूरी फिर ना सहती है ...
ये कैसे दिल को लिख देती है ...
