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Manisha Wandhare

Abstract

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Manisha Wandhare

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अनजानी ख्वाहिशें ...

अनजानी ख्वाहिशें ...

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पतझड़ का? मौसम है

दिल में सवाल कई सारे है

ठहरकर पुछती है जिंदगी

जी गई पुरी या ख्वाब अधूरे है...

एक पुराना पेड़ है बागों में

जो कई सालों से जाना है

पीढ़ी दर पीढ़ी चढ़ी है उसपर

और अब भी वो तराना पुराना है ...

कई ख्वाब मिल के देखो

एक ख्वाब सजता है

दौड़े थे हम जिसके पीछे

कहाँ जैसे के वैसे मिलता है...

अनजान सखी है ख्वाहिशें

एक खत्म दूसरी आ जाती है

हर मोड़ पे नया रूप नया रंग

मानो दुनिया इसको ही रंगती है...



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