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Namrata Saran

Abstract

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Namrata Saran

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ओस

ओस

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रात सुरमई आसमां ने

बिखेर दिए ज़मीन पर

जैसे मोती खनखनाकर,


अलसुबह ये श्वेत कण

लेते हुए  अंगडाईयां

जागे धरा के दामन पर


पत्ते से टपकती एक बूंद

मोतियों की चमकती लड़ी

प्रकृति हँसे खिलखिलाकर


क्षणिक जीवन की जीवंतता

हर बूंद सक्षम देने शीतलता

न क्रंदन भावी पल की शुष्कता पर,


मै खुश हूँ, क्षणिक ही सही

प्रकृति के कणकण शीतलता भरकर

चाह यही ,मैं फ़िर बिखरुं धरती पर

नन्ही नन्ही *ओस* बनकर!



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