वो एक कप चाय
वो एक कप चाय
वो
एक कप
चाय की प्याली..
जो साझा की थी हमने
बरसात में...
चाय के ठेले पर
भीगते दो मन.
एहसासों की बारिश में
गर्म चाय के साथ
खोए थे सपनों में..
साथ जीने की कस्में
कभी न दूर जाने के वादे..
वो एक कप चाय
जैसे खत्म ही नही हो रही थी..
या.
हम खत्म करना नही
चाहते थे..
आज भी.
हर सुबह चाय की प्याली
ले आती है वही खुशबू
जगा देती है वही एहसास
वो अखबार पढते पढते
चाय की चुस्कियां लेते हैं
और मैं.....
होती हूँ .उसी चाय के ठेले पर..
मन भीगता रहता है
मैं चाय पीती रहती हूँ।
