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Namrata Saran

Romance

4  

Namrata Saran

Romance

सावन तुम जब भी आते हो

सावन तुम जब भी आते हो

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सावन तुम 

जब भी आते हो...

संग लाते हो

लरजते गरजते मेघ...

संपूर्ण व्योम

मुग्ध हो धरा पर...

बरसता है झमाझम...

भर देता है शीतलता....

तपती झुलसती अवनि पर,,

करी धरती की कोख हरी

लगाकर झड़ी पे झड़ी,,

झर झर कर गगन से

उष्णता शांत करी....

ओ मेघराज ....

उमड़ते घुमड़ते बादलों...

चमकती बिजलियों....

निकलते छुपते

चाँद और सूरज....

और सतरंगी इंद्रधनुष....

साजन तक पहुंचा दो

एक मेरा भी संदेस

मनभावन इस सावन में

आ जाओ इह देस.....

चहुं ओर ऋतु मिलन की

आल्हादित कण कण

मैं तरसूं प्रियतम दरस को

एकाकी तन और मन....

ओ मेघराज,,

बादलों की फुहारों

भनभन बहती हवाओं

कोयल मोर पपीता की तान

अरे ओ सिहरती घटाओ....

नेह तरंग बरसा दो सावन

मेरा प्रीतम मनभावन साजन

मेरा कंगना पायल झूमर भी बोले

मुझे भी ला दो मेरा साजन...



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