कलाबाज़
कलाबाज़
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है,
जड़ देती अल्फाजों को
लेखन से इसका बेहद
लगाव है
कभी मोहब्बत में डूबी
स्याही बन जाती है
कभी दर्द की फुलवारी
पर अपनी सेज
बिछाती है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है,
गुमनामियों में भी इसे
बस छाया रहता,
लिखने ही लिखने का
खुमार है
लिखकर ही मिलता
इसके जड़ चेतन को
करार है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है,
लेखन कला का मिला इसे
(नन्हा सा) खुदाई उपहार है
इसी उपहार को पल-प्रतिपल
सींचने का भर लिया इसने (कलम ने)
हर रग-रग में
इकरार है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है,
क्या? हिसाब रखे ये,
पाठक गण का
लेखन शक्ति इसमें
भरी ईश ने
अद्भुत-अपार है,
अपने संक्षिप्त दायरे में
सीखने की खुली रखती
खिड़की
हरदम और हर बार है
मेरी कलम ही मेरा
पहला और आखिरी
प्यार है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है
कभी ये उलझी रहती
स्व: में
तो कभी चलती सबों (औरों)
पर भी, इसकी पैनी धार है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है,
गुड़ की डली सी मीठी कहती
बात है
और डरती नहीं करने से
कुटिलता पर तेज सा
प्रहार है।
कलम ये मेरी बड़ी
कलाबाज़ है
आता इसको मुस्कुराना
और बस चलते-चलते
चलते ही जाना
करना चाहती ये
तेरा धन्यवाद है,
ऐ खुदा, ऐ मेरे परमात्मा!
तू अपनी कृपा
मेरी कलम पर
सदा सदा ही
बरसाते रहना।