बुझे हालात।
बुझे हालात।
बुझे हालात
वक्त तू इतना जालिम क्यूं है
बुझे हुए चेहरे, दिल इतने मायूस क्यूं हैं।
हर घड़ी, खौफ की लहर बह रही इतनी तेज क्यूं है
दौड़ते-भागते, शहर, इतने सन्नाटे में डूबे क्यूं हैं।
रह- रह के अंतस में उठ रही हूकें क्यूं हैं
शख्स आज शख्स से इतना भयभीत क्यूं है
मरघट आज इस कदर आबाद क्यूं है
हां, मरघट ही जीवन का अन्तिम सफर है
आज असमय ही धरा मौत के तांडव से थर्रा रही है
ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें,
तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।।