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VIKASH YADAV

Horror Others

3.6  

VIKASH YADAV

Horror Others

मौत से सामना

मौत से सामना

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हवा की सरसराहट के बीच, कुछ आवाज़ बाहर से थी आई

तन ठिठुरा, हाथ कांपते, फिर मैंने भी एक आवाज़ लगाई ।

"कौन है भाई, काम है क्या कुछ" कहकर बैठ गया मै जैसे

जवाब ना आया उस तरफ से, मै अब आगे बढ़ता भी कैसे ।

अंधेरा घना था आधी रात का, कौन जाने क्या थी वो बला

था आंखो में एक जलजला, करने को कुछ अब भला ।

मै निश्चय ही मन बनाया हूं , फिर धीरे से कदम बढ़ाता हूं 

कुछ दूर चलके रुक जाता हूं, साए को नजदीक पाता हूं ।

कुछ क्षण रुककर वो बोला "मै तेरी ही हूं एक परछाई"

फिर मैंने भी हिम्मत करके आखिर उससे नजर मिलाई ।

श्वेत रोशनी में था समाहित, फिर उसने अपनी चुप्पी तोड़ी 

तेरे पापो की काली स्याही, चित पर फ़ैल गई है सारी ।

धर्म को बचाने, तुझे मिटाने मुझको फिर आना ही पड़ा 

कर्म तुम्हारे ठीक नहीं है, पाप का तेरा भर गया घड़ा ।

गुस्से में होकर वो लाल, कहने लगा "हो जा खबरदार"

बचा नहीं सकता कोई अब, जाएंगे तेरे सारे प्रयत्न बेकार ।

हो जा तैयार, सुनने को आज, एक बात तुम्हे मै बतलाता हूं 

पूर्ण हुआ समय धरा पर तेरा , उस पार तुम्हे मै ले जाता हूं ।

सुनकर उसकी बात मै अब, मुंह से कुछ बडबडाता हूं ।

सहसा ही नींद टूट गई , खुद को बैठा पाता हूं ।

बूंद पसीने की थी माथे पर, तन में कम्पन था भारी ।

क्या आज मुझे मारने आई थी , मेरी ही वो परछाई ।

"अच्छा ये तो था एक सपना" बोल कर खुश हो जाता हूं 

पाकर जिंदा खुद को मै फिर, वापिस सोने को चला जाता हूं।


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