STORYMIRROR

VIKASH YADAV

Horror Others

4  

VIKASH YADAV

Horror Others

मौत से सामना

मौत से सामना

2 mins
624

हवा की सरसराहट के बीच, कुछ आवाज़ बाहर से थी आई

तन ठिठुरा, हाथ कांपते, फिर मैंने भी एक आवाज़ लगाई ।

"कौन है भाई, काम है क्या कुछ" कहकर बैठ गया मै जैसे

जवाब ना आया उस तरफ से, मै अब आगे बढ़ता भी कैसे ।

अंधेरा घना था आधी रात का, कौन जाने क्या थी वो बला

था आंखो में एक जलजला, करने को कुछ अब भला ।

मै निश्चय ही मन बनाया हूं , फिर धीरे से कदम बढ़ाता हूं 

कुछ दूर चलके रुक जाता हूं, साए को नजदीक पाता हूं ।

कुछ क्षण रुककर वो बोला "मै तेरी ही हूं एक परछाई"

फिर मैंने भी हिम्मत करके आखिर उससे नजर मिलाई ।

श्वेत रोशनी में था समाहित, फिर उसने अपनी चुप्पी तोड़ी 

तेरे पापो की काली स्याही, चित पर फ़ैल गई है सारी ।

धर्म को बचाने, तुझे मिटाने मुझको फिर आना ही पड़ा 

कर्म तुम्हारे ठीक नहीं है, पाप का तेरा भर गया घड़ा ।

गुस्से में होकर वो लाल, कहने लगा "हो जा खबरदार"

बचा नहीं सकता कोई अब, जाएंगे तेरे सारे प्रयत्न बेकार ।

हो जा तैयार, सुनने को आज, एक बात तुम्हे मै बतलाता हूं 

पूर्ण हुआ समय धरा पर तेरा , उस पार तुम्हे मै ले जाता हूं ।

सुनकर उसकी बात मै अब, मुंह से कुछ बडबडाता हूं ।

सहसा ही नींद टूट गई , खुद को बैठा पाता हूं ।

बूंद पसीने की थी माथे पर, तन में कम्पन था भारी ।

क्या आज मुझे मारने आई थी , मेरी ही वो परछाई ।

"अच्छा ये तो था एक सपना" बोल कर खुश हो जाता हूं 

पाकर जिंदा खुद को मै फिर, वापिस सोने को चला जाता हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Horror