मौत से सामना
मौत से सामना
हवा की सरसराहट के बीच, कुछ आवाज़ बाहर से थी आई
तन ठिठुरा, हाथ कांपते, फिर मैंने भी एक आवाज़ लगाई ।
"कौन है भाई, काम है क्या कुछ" कहकर बैठ गया मै जैसे
जवाब ना आया उस तरफ से, मै अब आगे बढ़ता भी कैसे ।
अंधेरा घना था आधी रात का, कौन जाने क्या थी वो बला
था आंखो में एक जलजला, करने को कुछ अब भला ।
मै निश्चय ही मन बनाया हूं , फिर धीरे से कदम बढ़ाता हूं
कुछ दूर चलके रुक जाता हूं, साए को नजदीक पाता हूं ।
कुछ क्षण रुककर वो बोला "मै तेरी ही हूं एक परछाई"
फिर मैंने भी हिम्मत करके आखिर उससे नजर मिलाई ।
श्वेत रोशनी में था समाहित, फिर उसने अपनी चुप्पी तोड़ी
तेरे पापो की काली स्याही, चित पर फ़ैल गई है सारी ।
धर्म को बचाने, तुझे मिटाने मुझको फिर आना ही पड़ा
कर्म तुम्हारे ठीक नहीं है, पाप का तेरा भर गया घड़ा ।
गुस्से में होकर वो लाल, कहने लगा "हो जा खबरदार"
बचा नहीं सकता कोई अब, जाएंगे तेरे सारे प्रयत्न बेकार ।
हो जा तैयार, सुनने को आज, एक बात तुम्हे मै बतलाता हूं
पूर्ण हुआ समय धरा पर तेरा , उस पार तुम्हे मै ले जाता हूं ।
सुनकर उसकी बात मै अब, मुंह से कुछ बडबडाता हूं ।
सहसा ही नींद टूट गई , खुद को बैठा पाता हूं ।
बूंद पसीने की थी माथे पर, तन में कम्पन था भारी ।
क्या आज मुझे मारने आई थी , मेरी ही वो परछाई ।
"अच्छा ये तो था एक सपना" बोल कर खुश हो जाता हूं
पाकर जिंदा खुद को मै फिर, वापिस सोने को चला जाता हूं।