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Mohd Anwar Jamal Faiz

Horror Tragedy

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Mohd Anwar Jamal Faiz

Horror Tragedy

सोज़ के सवाल

सोज़ के सवाल

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सोज़ के सवाल

[ निर्भया पे लिखी एक नज़्म ]


वो खिलखिलाती, चहचहाती

फूलों सी मासूम सी

अपनों की आँखों का तारा,

ख्वाबों पे मरक़ूम सी


आँखों में नये ख्वाब थे

वो ऊँची सी परवाज़ थी

वो तलबा थी औ एक सुनहरे

कल का आगाज़ थी


वो घुप अंधेरी रात में

जो मसली गयी मासूमियत

है तार तार वहशिपन

से आदमी की आदमीयत


वो पानी ना वो खून था

वो बदन था, ना बाज़ीचा कोई

वो फूल किसी के घर का था

ना दश्त, ना बाग़ीचा कोई


ना रस्मन पूछी आख़िरी

ख्वाहिश भी हैवानों ने

ना दुश्मन के ख्यालात भी

जो कर दिया शैतानों ने


वो चीखी भी, चिल्लाई भी

वो सिमटी भी, गुहार भी

आँख बाहर कर के रोई,

खुल्द भी, ये दयार भी

और फड़फड़ाती लौ को फिर

बुझना था, वो बुझ गयी

और ज़ीस्त दम-ए-आख़िर कही

किस दुनिया मे वो लुझ गयी


जब सर ज़मीन के पास था,

और छोटे छोटे हाथ थे

देवी मुझको कह के रस्मन

कइयों ने ही पूजा था


यूँ बड़ी मैं क्यूँ हुई

के सब लुटेरे बन गए

आज नीचे थे कई,

और सीने पे कोई दूजा था


आज मेरी आबरू ना,

सबकी ही तो लूट गयी

ये तो सतही जलवा के बस

मेरी क़िस्मत फुट गयी


मैं तो गयी, पर अब सवाली

है मेरी ये दास्तान

क्या क़दम के हो ना पाए,

फिर किसी का ये बयान


सोचो क्या ही फ़र्क़ है,

मेरी तुम्हारी ज़ात में

ये घुसा है, कल घुसेगा

फिर किसी की आँत में


अब तो आतिश रख के

सीने में मेरी ये दास्तान

सुन के रोती है ज़मीन

और रोता है ये आसमान




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