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Mohd Anwar Jamal Faiz

Others

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Mohd Anwar Jamal Faiz

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परम् सत्य निर्मल

परम् सत्य निर्मल

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वो ही सावन के अधरों में,

वो ही है सुरभित अंचल,

वो ही नभ में नीली चादर,

वो ही सरिता की छल-छल ।


वो प्रकृति, वो रीत ना माँगे,

मत हो इतने आकुल, विह्वल,

सत्य सत्य पढ़ के कर लो,

मन शुद्ध अपना और धवल ।


आडंबर में रची है दुनिया,

जिसको देखो उतनी रीत,

ईश मगर है किसका मीत,

स्वीकृत किसकी कितनी प्रीत ।


रोके सत्य सत्य है तुमको,

झोंको ना ख़ुद को बलप्रीत,

ईश-मिलन जब मन निर्मल -

यही सत्य की प्रणय-पुनीत !


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