परम् सत्य निर्मल
परम् सत्य निर्मल
1 min
345
वो ही सावन के अधरों में,
वो ही है सुरभित अंचल,
वो ही नभ में नीली चादर,
वो ही सरिता की छल-छल ।
वो प्रकृति, वो रीत ना माँगे,
मत हो इतने आकुल, विह्वल,
सत्य सत्य पढ़ के कर लो,
मन शुद्ध अपना और धवल ।
आडंबर में रची है दुनिया,
जिसको देखो उतनी रीत,
ईश मगर है किसका मीत,
स्वीकृत किसकी कितनी प्रीत ।
रोके सत्य सत्य है तुमको,
झोंको ना ख़ुद को बलप्रीत,
ईश-मिलन जब मन निर्मल -
यही सत्य की प्रणय-पुनीत !
