STORYMIRROR

Mohd Anwar Jamal Faiz

Others

4  

Mohd Anwar Jamal Faiz

Others

सत्यशाला

सत्यशाला

1 min
673

कवि हूँ, लाया खूब तपाकर,

शब्दों, तर्कों की भाला;

पुष्प सच्चे को और झूठे को,

शूल लगेगी सत्यशाला !


जीवन की मदिरा में उलझा,

क्यूँ सहता रहता है ज्वाला?

एक तो तू है निर्बल इतना,

और विष- धर्म का जाला ।


जब तुम चाहो आओ द्वारे,

लेकर अपनी प्यास प्याला;

मैने तो दिन-भर, रजनी-भर

खोल रखी है सत्यशाला ।


तुम अपना सत्य मुझको दे दो,

सत्य की देखो मेरी माला;

कुछ तेरी, कुछ मेरी, दोनों की -

ऐसी है ये सत्यशाला !


Rate this content
Log in