डरावना मंजर
डरावना मंजर
आनंद का उत्सव था, मातम में बदल गया
हाथ थामे कौन किसका, हर कोई डर गया।
नव वर्ष में संगी साथी मस्ती से घूमने चले
मौत की आगोश में पुलिया पर झूलते चले।
काल को क्या सूझी, कोई भी समझ न पाया
झूलते पुल पर दिखता नहीं था कोई हमसाया।
मां ने लाल खोया तो बहन ने अपना भाई
देखकर वह मंजर आंख आज भर आई।
एक खौफनाक हादसे को कैसे मैं भुलाऊं
जो निर्दोष चल बसे उन्हें कैसे मैं भुलाऊं!
मन बड़ा विचलित है, उसे कैसे मैं मनाऊं
जो अपने चल बसे उन्हें कैसे मैं भुलाऊं!