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अनजान रसिक

Horror Inspirational

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अनजान रसिक

Horror Inspirational

भूत

भूत

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सपनों में डूब के एक अंधेरी सी ,अकेली सी, शांत सी रात में,

निल-बट्टे-सन्नाटा छा गया ,ऐसा चौतरफा खौफ़ था उस सपने के गर्भ में ।

सूनसान शमशान में, जर्जर सी अंधेरी हवेली थी वो ,खड़ी थी जिसके मैं सामने,

प्रयोजन था बस इतना कि पूरी हो जाये हर मनोकांक्षा उस रात में I

बताया था मुझे जो एक पडरिए ने कभी ,कि दुखों से मुक्ति का यही एकमात्र उपाय है,

21 हष्ट-पुष्ट इंसानों की बली दे दे तू बालक ,व्यवधानों से मुक्ति का यही इलाज़ है ।

अपने कष्टों से मुक्ति पाने हेतु लग गई पूरे मनोयोग से मैं नरसंहार में,

विवेक और बुद्धि को लगा दिये ताले, ऐसे भ्रमित हो गई उस नापाक सुझाव से ।

एक के बाद एक, लगातार ,अविराम,निष्ठुरता से ,करता रहा मेरा खंजर वार पे वार,

खोद के कब्र उस हवेली के आगे सोचा कि खत्म हो जाएगा इस प्रकार ,हर विकार का निवारण।

पर भूल गई थी कि दिल तो मेरा हमेशा से ही बच्चा है जी ,

सह नहीं सकता किसी को जख्म पहुंचाने के पश्चाताप का बोझ, सदा से ही थोड़ा कच्चा है जी।  

कल्पना-मात्र में मँडराते हुए दिखने लगे लाशों के भूत तो सहम गई, टूट गई,बिखर गयी मैं,

बिलख-बिलख के रोने लगी, अश्रुधारा टप- टप बरसने लगी नेत्रों से पूरे वेग में ।

यूं तो यह स्वप्न-मात्र था पर भय से टूट के बिखर गई मैं ,

लगा कि सच में सम्पूर्ण मानव जाती की गुनहगार बन गई मैं ।  

व्याकुलता में टूट गई नींद और उठते ही मैंने माथे से दुर्गा-प्रतिमा को कुछ इस तरह ,

भूखा बालक अन्न खोजते हुए माँ से लिपट जाता है जिस तरह।

बिखरे हुए दिल को ढांढस मिल गया गायत्री मंत्र का जाप कर के,

ऐसा सपना,ऐसी कल्पना गई कुछ ऐसा डरावना असर कर के ।

भूत-वूत कुछ नहीं होता ,ये तथ्य जानते भी हुए भी द्रवित हो उठा था दिल पता नहीं क्यों,

जानते हुए कि सर्व-शक्तिमान है ईश्वर का नाम , भूतों से डर गई ना जाने मैं क्यों ?



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