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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Horror

पुरानी साइकिल

पुरानी साइकिल

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वो मुंह फुलाकर ऐसे बैठी है 

लगता है कि हमसे थोड़ी ऐंठी है 

सीधे मुंह बात ही नहीं करती 

कहीं, हाथ भी रखने नहीं देती 


कुछ कुछ नाराज़ लगती है 

बिना ही बात बिगड़ती है 

कभी कभी तो सचमुच में वो

हमको बीवी जैसी लगती है 


जब प्रेम भरे चितवन से देखती है 

तब मेनका उर्वशी सी दिखती है 

मगर जब क्रोधित हो जाए तो 

एक झटके में "चैन" उतार देती है 


जब बिगड़ती है तो ऐसी बिगड़ती है 

अपनी जगह से टस से मस नहीं होती है 

और जब वह मौज में होती है 

तो बड़े प्यार से दुनिया की सैर कराती है 


जब उस पर सवार होते थे तो 

खुद को एक राजकुमार समझते थे 

उसके ही खयालों में रहते थे 

और उसी की बांहों में सोया करते थे 


उसकी घंटी की मधुर आवाज़ 

कोयल से भी मीठी लगती थी 

बदन केले से भी चिकना था कि

उंगलियां बरबस ही फिसलतीं थी 


कभी वह दिलरुबा हुआ करती थी

अपनी जान से भी प्यारी लगती थी 

मगर जब से "बाइक" से नैन लड़ गये 

कमबख्त अधेड़ सी लगने लगी थी 


घर के एक कोने में गुमसुम सी 

खड़ी खड़ी टसुए बहाती रहती है 

बेवफा हरजाई कह कह कर हमें 

दिल के घाव दिखाती रहती है 


हम भी मानते हैं कि हमने

उसके साथ न्याय नहीं किया 

पुरानी "साइकल" को छोड़कर

नई नवेली "बाइक" को अपना लिया।



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