भादो की रात
भादो की रात
भादो की रात है
झूम रही है बयार
डर लगता है देखने में
नजर न आता आर पार।
सन सन हो रही बरसात
ऐसी डरावनी काली रात
बादल गरजे जोरों से
ओले पड़ते साथ साथ।
बिजली की वो कड़क आवाज
परमाणु जैसे फटते बादल
हिल जाती है नींव घरों की
मानो आसमान में हो रहे पागल।
अगली भोर होती है जब
सबकी जुबान रात की बातें
दिखता डर सबके चेहरों पर
भूल ना पाए भादो की रातें
लगातार जब होती वर्षा
खेत भी बन जाते तालाब
बन जाते हैं कहीं सुंदर झरने
तो कहीं रहता बाढ़ सैलाब।

