वो डरावनी रात
वो डरावनी रात
रात अंधेरी और सुनसान-सी सड़क पर चला जा रहा था,
न मिल रही थी मंजिल कोई, बस भटकता ही जा रहा था,
डर के मारे लग रहा जैसे जिंदगी कहीं ठहर- सी गई मेरी,
कदम तेजी से बढ़ रहे थे अंधेरा देखकर मैं घबरा रहा था,
रह- रहकर उस रात का वो घना सन्नाटा मुझे डरा रहा था,
उस घोर अंधकार को देख दिल मेरा बहुत घबरा रहा था,
अनजान साया देख, शंकाओं के बादल जब घुमड़ने लगे ,
पर ये तो अपनी ही परछाई को देखकर मैं घबरा रहा था I
हो रही थी भयंकर बरसात डरावनी-सी वो काली रात थी,
हवाओं का वो डरावना शोर जैसे मुझको ललकार रहा था,
भय से सहम गया , जब बादलों में तीव्र गर्जना हो रही थी,
पेड़ों की हिलती हुई शाखाएँ रह-रहकर शोर मचा रही थी ,
तभी अचानक जाने ये क्या हुआ , सब बदल-सा गया वहाँ,
ना जाने क्या- क्या राज दफन थे उस अंधेरी काली रात में,
देखकर हकीकत को मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई ,
अपने मन को समझाने वाला उत्तर नहीं कोई मिल रहा था,
एकाकीपन में दुर्बल मन मेरा, जाने कहाँ भटक रहा था ?
असमय गहन लगा पूनम चांद को अमावस घिर आई थी,
दूर हुए कई प्यार करने वाले, यहाँ कैसी बदरा सी छाई थी,
डरावनी पदचापों की वो ध्वनि मेरे मन में सुनाई दे रही थी,
मौत की आहट मुझे देहरी पर ही क्यों दिखाई दे रही थी ,
धीरे-धीरे कदमों को बढ़ाया एक रोशनी नजर आ रही थी,
सोचा रोशनी में कोई मदद को मिलेगा, होगा कोई सहारा,
आगे कालकोठरी में पहुंचा अंदर हो रही कुछ हलचल थी,
वहाँ अनगिनत लड़कियों को बंधक बनाकर रखा हुआ था,
कहीं लाशें सड़ रही थी तो कहीं लाशों से बदबू आ रही थी,
कालकोठरी में जाने ये मौत का, कैसा मंजर दिख रहा था,
देखकर घबराया मैं, चोरी-छिपे गलत काम वहाँ हो रहे थे,
अब समझ आया वो सड़क क्यों डरावनी और सुनसान थी,
तुरंत किया समझदारी से एक काम मदद को लोग आ गए,
पकड़ लिया जालिमों को , हथकड़ियां हाथ में डलवाई थी,
आज मैंने जाने कितनी ही लड़कियों की जान बचाई थी I
वो सन्नाटा वो डरावनी बरसात की रात
आज भी याद है मुझे, आज भी याद है मुझे II