जाने कहाँ गए वो दिन
जाने कहाँ गए वो दिन


बड़े नादान थे,दुनिया जहान से अनजान थे,
खेलते थे पूरी दुपहरी,खाने को कितने पकवान थे।
भागते कूदते चोट खाते,खुद ही गिरते खुद ही उठते थे,
स्कूल जाते रोना कक्षा में जाके सोना,मैडम से कितना पिटते थे।
मेहमान की थाली से मिठाई उठाना,वो माँ का आँख दिखाना,
पैसे मिलने पर बनिये की दुकान पर जाना,बबलगम खाके फुलाना।
जाने कहाँ गए वो दिन
रिश्तेदारी में माँ के साथ जाना,जमकर उत्पात मचाना,
वो बजरी के ढेर में घरौंदे बनाकर हाथ मिलाना।
सतोलिया,पोशम्बा,चोर पुलिस,आँख मिचौली,कितने खेल थे,
स्कूल के रिजल्ट में सब में पास बस गणित में फेल थे।
छुट्टियों में नानी के घर जाना, कितनी कहानियाँ सुनते थे,
खूब लड्डू मिठाई पकवान खाना,पहनने को नये कपड़े मिलते थे।
जाने कहाँ गए वो दिन
माना की बिजली कम आती थी,पानी पनघट और हैंडपंप से लाते थे,
राशन की लम्बी लम्बी लाइन में लगकर किरोसिन अनाज आते थे।
वो एक रूपये का सिक्का खोना,हवाई जहाज देखकर खुश होना,
नींद में बिस्तर पे सुसु आना,सपनो में परी के संसार का होना।
होली पे रंगो की बहार थी,दिवाली पे पटाखों की भरमार थी,
संक्रान्त पे पतंग लूटना,त्योहारों पे कहाँ किसी चीज की दरकार थी।
जाने कहाँ गए वो दिन
रंगोली चित्रहार चंद्रकांता शक्तिमान,क्या कमाल टीवी पर आते थे,
सारा काम छोड़ छाड़ भूल भाल कर, इन्हे देखने में खो जाते थे।
डाकिया दिखते ही खिल जाते थे,चिट्ठी आने पर कितने खुश हो जाते थे,
कितने जज्बात से चिट्ठी पढ़ते थे,एक एक अक्षर दिल में उतर जाते थे।
जवाब में एक चिट्ठी लिख, लाल डिब्बे में डाल आते थे,
जब क्रिकेट खेलने जाते थे, बैट वाले राजा बनकर आते थे।
जाने कहाँ गए वो दिन
पता नहीं कितने पेड़ो से,छुप छुपकर आम अमरुद तोड़े थे,
कितने ही माली हाथ में डंडा लिए पीछे मारने को दौड़े थे।
जीमने का अपना ही मज़ा था,पंगत में झट से बैठेते थे,
खूब खाते पीते ठाठ से पर जूठा कहाँ छोड़ते थे।
पुरे साल मेले का इंतजार रहता था,मेले के दिन जिद करके पैसे ज्य
ादा ले जाते थे,
कितने खिलौने कितनी मिठाइयाँ,कुछ भी नहीं तो एक बाँसुरी ही खरीद लाते थे।
जाने कहाँ गए वो दिन
साइकिल पाने को रूठते थे,रेडियो सुनकर बहलते थे,
पापा के छुट्टी आने पर सबसे पहले बैग टटोलते थे।
नए कपड़े पहन राजकुमार से बन बारात में जाते थे,
कभी बैंड पर भागड़ा तो कभी नागिन डांस कर आते थे।
खो खो लूडो सांप सीढ़ी खेल निराले थे,कैरम बोर्ड के कितने दीवाने थे,
बीमार पड़ने पर इंजेक्शन से घबराते थे,गुलेल पे अपने अचूक निशाने थे।
जाने कहाँ गए वो दिन
सावन में पेड़ो पर झूले लगाते थे,सारा दिन झूलते जाते थे,
खास मौको फोटोग्राफर आते थे,टूटे दांतो से हँसकर फोटो खिचवाते थे।
सुबह सुबह एक फ़क़ीर गीत गाते आते थे,जीवन का सार बताते थे,
स्कूल में साथियों छुप कर टिफिन खाते थे, बरसात में नंगे नहाते थे।
कितनी कॉमिक्स पढ़ते थे,चाचा चौधरी नागराज डोगा बिल्लू पिंकी खूब लुभाते थे,
कार्टून में मिकी माउस, डक टेल्स, टेल्स स्पिन,टॉम एंड जैरी दिल खोलकर हँसाते थे।
जाने कहाँ गए वो दिन
वो तितली पकड़ना फिर सावधानी से छोड़ देना क्या कला थी,
पेड़ पर लटकना चढ़ना नदी में नहाना दोस्तों की सलाह थी।
गिल्ली डंडा चौपड़ पासे कंचे खेलना रस्सी कूदना पार्लेजी खाना,
फिसलपट्टी पे फिसलना छत पे एंटीना सही करना बागों से फूल तोड़ना।
वो पंखे का खड़खड़ करना,वो पिकनिक पे जाना वो गानों के कैसेट भरवाकर सुनना नाचना,
वो एसटीडी पे जाके फ़ोन करना,वो किताब में विद्यारानी रखना वो जन्मदिन पे टॉफी बांटना।
जाने कहाँ गए वो दिन
गुड्डे गुड़ियों के खेल निराले थे,एक अपना घर संसार बसाते थे,
वो चूल्हे की रोटी और चटनी का स्वाद उंगलिया चाटकर खाते थे।
रात को चाँद पे बूढ़ी नानी और उसका चरखा ढूंढ़ते थे,तारे गिनते थे
घर में जब वीसीआर लाते थे तो पूरी रात फिल्म चलाकर देखते थे।
रामायण महाभारत जब टीवी पर आते जिस दिन,पुरे देश की सांसे थम जाती उस दिन,
अब ढूंढ़ता हूँ तुम्हें कहाँ खो गए तो तुम,फिर से लौट आओ ना मेरे वो प्यारे सुहाने दिन।
जाने कहाँ गए वो दिन