एसिड अटैक
एसिड अटैक


हृदय विदारक है तेजाबी हमला
हाय कैसे इसके क्रूर दंश से बचे अबला ?
जीवन में छा जाता है करुण क्रंदन,
ज्यों नैराश्य का उर में स्थाई आगमन।
तिल- तिल कर मरना पड़ता है,
जीवन ज्वाला से झुलसना पड़ता है।
एक तरफा प्रेम की इस आग ने,
मनचलों की अंधी दौड़भाग ने,
झुलसा दी है कंचन काया
देख दर्पण भी जी घबराया।
सुनहरी रंगत जला दी है,
आत्मा को भी सजा दी है।
रूह के यह जख्म रोते हैं मौन,
आत्मा की पीर समझेगा कौन ?
शारीरिक सुंदरता का प्रशंसक जमाना,
रूप सौंदर्य का यह रसिक पुराना।
कुरूप काया से सब भयभीत हैं,
यह दूषित मनोवृत्ति की जीत है।
एसिड अटैक चिता है जीवित तन की,
मौन कराह है पीड़ित अंतर्मन की।
कहां जानते समझते हैं वह इसका परिणाम,
जो इस घटना को देते हैं अंजाम।
पशुपत है उनका यह आचरण,
इंसान के वेश में असुर करते विचरण।
अपनी इच्छा पूर्ति के लिए करते हैं पाप
प्रेम नहीं यह है एक अभिशाप।
प्रेम में तो प्राप्त करने की लालसा ही नहीं,
निस्वार्थ है, निश्चल है, दुर्भावना ही नहीं।
प्रेमी प्रेयसी के मस्तक पर न सहन करें शिकन,
स्वयं जलकर फैलाते प्रिय के जीवन में किरन।
प्रेम नहीं यह है पागलपन,
जो सर्वस्व भस्म करके खोजता अमन।
एसिड अटैक का निकालना होगा निराकरण
झुलस चुका है बहुत कोमल त्वचा का आवरण।
दो-चार दिन अखबार की सुर्खियों में रहता है
जीवन भर का दंश कुटुंब सहता है।
पत्र-पत्रिकाओं की खबर बनता है यह प्रकरण,
छिड़ जाता पीड़िता के अंतस में रण।
क्या मिल पाता है पीड़िता को न्याय ?
जीवित लाश होना है स्वयं पर अन्याय।
कुरूप हो जाती है कंचन काया,
घबराता है साथ चलने में स्वयं का साया।
शीघ्र बंद हों ऐसे अमानवीय कृत्य,
अनैतिकता करती है नग्न नृत्य
हृदय विदारक है तेजाबी हमला,
हाय कैसे इसके क्रूर दंश से बचे अबला ?