प्रकृति गीत
प्रकृति गीत
प्रकृति को बनाएँगे हम अपना मित्र,
निर्मल मन हो, साफ-सुंदर हो चित्र।
नदियाँ, पहाड़, झरने, सागर ,तरु,
प्रकृति का कण-कण दे सीख विचित्र।
तरंगिणी का मधुर निनाद है कल- कल,
इंदु की चंद्रिका है दुग्ध की भाँति धवल,
रक्तिम लालिमा सा उदित दिवाकर,
बना रहा जन जीवन उज्जवल।
प्रभात का वर्ण है स्वर्णिम लाल,
रक्तिम गुलाल युक्त है संध्या काल,
किस चित्रकार ने भर दिए रंग सुंदर?
विचलित करता है कवि को यह सवाल।
अनवरत बहती है शीतल मंद पवन,
सौंदर्य युक्त हैं सर्वस्व सुगंधित सुमन,
श्वांसों में घुल जाता है इत्र कोई,
देखें जब भ्रमर प्रेमसुधा पूरित मधुवन।