स्वच्छता
स्वच्छता
साफ- स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ,
स्वच्छता के प्रति नवजागरण चाहिए।
वाणी मृदुल, उर पवित्र,और व्यवहार सौम्य हो,
शालीनता के साथ पावन आचरण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ।।
स्नेह के धागे से बंधा हो कुटुंब अपना,
हृदय दर्पण पर न कोई आवरण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए।।
उज्जवल वेश, निर्मल देश, धवल गणवेश हो,
स्वच्छता की आदत का होना अनावरण चाहिए ।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ।।
तज कर प्लास्टिक मृदा से जुड़ें हम,
नहीं प्रकृति का दोहन करना अकारण चाहिए ।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए।।
पुनः प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान हम करें,
प्रकृति माँ की गोद में हमें लेनी शरण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ।।
सर्वस्व स्वच्छ हो जल,मृदा,वायु, धरा,
स्वच्छ चंद्रिका सा उर का दर्पण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ।।
चित्र के साथ चरित्र भी हो उत्तम हमारा,
नेक कर्म पथ का हमें करना वरण चाहिए ।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए।।
प्रेम की भागीरथी अविरल बहती हो हृदय में,
द्वेष, ईर्ष्या ,वैमनस्य का होना हरण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए।।
स्वच्छता अभियान सीमित न रहे कागजों तक,
स्वच्छता को चरितार्थ करना हर क्षण चाहिए।
साफ स्वच्छ प्रकृति का कण-कण चाहिए ।।