संगति...
संगति...
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इंसान का मन कभी अपने आप विचलित नहीं होता है,
इंसान को विचलित करने वाला खुद इंसान ही होता है,
कोई अच्छे संस्कारों में जीता है,
कोई गलत संगति में जो गलत संगत में होते है,
अच्छे के साथ बात करने से कतराते है,
वो यही चाहते की अपने जैसा बन जाए बहुत कोशिश करते है,
उनके संस्कारो को भंग करने की
जैसे गंदी आदतें, नशा करना, बुरे काम करना
ये सब थोपने की कोशिश करते है,
पर जो संस्कारों में पले बड़े होते है,
कहीं विचलित नहीं होते चाहे माहौल कैसा भी हो
आपकी संगति आपके संस्कार बताती है,
संगत सोच समझकर करनी चाहिए...