परिणीति
परिणीति
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सूर्य तुम तपो
पर इतना नहीं
कि पृथ्वी जल जाए।
मेघ, तुम बरसों
पर इतना नहीं कि
नदियाँ उफन पड़ें,
सब कुछ फिसल जाए।
हवा तुम बहो
पर ऐसे नहीं कि
घूमने लगे समुद्र,
सृष्टि हिल जाए।
मनुष्य, तुम चाहते हो
तो रहो पर यूँ कि
साँस बनी रहे,
पानी बचा रहे।
