डरावना माहौल
डरावना माहौल
घर में ज्यादा शांति हो तो भी दिल दहकता है
उस शांति में जरा सी खटक भी हो जाए तो डर लगता है
ये शांति घर में रात को 2 से 3 बजे के बीच ही होती है
घड़ी की टिक- टिक करके चलना
हमें हमारी धड़कनों के चलने का आभास करती है
अंधेरा डर में हमारे चार चांद लगा देता है
एक कदम जमीन में पैर रखने के ख्याल से ही डर लगता है
और हिम्मत करके आगे बढ़ना भी चाहे
तो टक- टक कदमों की आवाज़ और पसीना छूटा देती है
कभी कुत्तों का अचानक से भोंकना
कभी अचानक बिल्लियों का रोना सुनायी देता है
वो हमें किसी अनहोनी का आभास कराती हैं
एक हल्का हवा का झोंका भी
उस समय हमारा डर बन जाता है
और एक डरावना माहौल बना देता है
वो हर एक आवाज़ हमें डरावनी लगने लगती है।