किस्मत
किस्मत
तारे गिनते - गिनते भोर हो गई
ना जाने कब ये बरसात शुरू हो गई
जो दिख रहे थे तारे वो भी
ना जाने कहां लुप्त हो गए
वो अँधेरे में जो बैठे थे हम
ना जाने वो कब यहां से चले गए
किस्मत को जिसके भरोसे छोड़ा था
ना जाने वो कब - कैसे बदल गए
जिसको हमने अपना माना था
ना जाने क्यों उम्मीदों पे पानी फेर के चले गए
जो लुप्त हुए ये चांद-तारे
ना जाने कब बादल भी घिर गए
इन बारिश की बौछारों के साथ
ना जाने कब मेरे अरमान भी बिखर गए
जो अँधेरे में तीर चलाते हैं
ना जाने वो कौन शूरवीर हैं
हम तो सिर्फ किस्मत के मारे हैं
ना जाने क्यों तीर खा रहे हैं।