सिर्फ तुम
सिर्फ तुम
धीरे-धीरे दस्तक देती हो तुम
दिल की चौखट पर जब कदम रखती हो तुम
इस दिल का क्या हाल होता है
जब नजरों से सब कहती हो तुम
जिस अंदाज़ में तुम आती हो
दिलों को छू के जाती हो
धीमी- धीमी चांदनी सी जब तुम बिखेरती हो
मेरे दिल की धड़कने थम सी जाती हैं
हवाएँ भी मद्धिम हो जाती हैं
फिजाएं धुन कोई छेड़ती हैं
मन चंचलता से भरा होता है
जब आमना-सामना हमारा होता है
दूरी हो के भी नज़दीकियाँ होती हैं
पास हो के भी फासले होते हैं
ये कैसा रिश्ता बन जाता है
जो हम निभा के भी निभा नहीं पाते हैं।