सरस्वती मैया
सरस्वती मैया
हे सरस्वती मैया!
तुम्हें शत-शत प्रणाम!
ये जो शब्द है मेरे
वो भी हैं तुम्हारे
ये जो वाणी है मेरी
ये भी है बस तुम्हारी
जो जिह्वा में है बोली
वो तूने ही है डाली
ये जो राग है मेरे
वो वाक भी है तेरी
ये जो नृत्य मैं करती
तो तुम वीणा चलाती
जो गीत मैं हूं गाती
तो तुम ही हो झलकती
ये जो मैं खेल-कूद करती
तो तुम ही हो खेलती
जो मैं मंच पर कलाकृति करती
वो तुम्हारी कृपा बरसती
ये जो बुद्धि मेरी चलती
तो तुम साथ रहती
जो मैं ज्ञान पाती
तो तेरी कृपा होती
जो मैं ज्ञान बाँटती
तो मैं विद्वान हो जाती
हे सरस्वती मैया!
तुम्हें मैं दूं धन्यवाद।
इस जग का हर मानव, तेरी कृपा पाता
तेरे आगे ही सर को है झुकाता।