नीरस मन हो उठते आनंदित नीरस मन हो उठते आनंदित
इतने में चक्षु ने अनुभव किया प्रकृति की लालिमा को निहारने का असीम क्षण जो पुकार रहा हो अपने प्रक... इतने में चक्षु ने अनुभव किया प्रकृति की लालिमा को निहारने का असीम क्षण जो पुक...
हे वंशीधर ! वंशी तेरी, माँझी हर मंझधार का, धुन तू कोई जगा, जगत के सपनों के आधार का। हे वंशीधर ! वंशी तेरी, माँझी हर मंझधार का, धुन तू कोई जगा, जगत के सपनों के आधार...
छिपे अर्थ को पहचानिए छिपे अर्थ को पहचानिए
सुबह के उजाले में छिपता वो कैसा पूंज है। सुबह के उजाले में छिपता वो कैसा पूंज है।
मनुज मन निखर रहा प्रकृति में ही रम रहा। मनुज मन निखर रहा प्रकृति में ही रम रहा।