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Pathik Rachna

Inspirational Others

5.0  

Pathik Rachna

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मेरे कृष्णा से

मेरे कृष्णा से

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मन मोहन !

तेरे मधुबन में बस पतझड़ का ही है संसार

इस मर्मर सी वीणा के सब टूटे टूटे से हैं तार ।


प्यासी-प्यासी सारी धरती, दलदल में भी है अँगार

कहाँ गई मुरलीधर ! तेरी मुरली में सब सुख का सार ।


हे बनवारी ! स्वर साधो

स्वर साधो, जिसकी ताकत से एक जादू की आवाज़ उठे

स्वर साधो जो इस सृष्टि की वीणा पर मंगल साज उठे ।


हे वंशीधर ! वंशी तेरी, माँझी हर मंझधार का,

धुन तू कोई जगा, जगत के सपनों के आधार का।


ओ यदुनन्दन ! तान सुना, स्वर धार तनिक लहराने दे

इस महातिमिर की बेला में, प्रभात किरण मुस्काने दे ।


मानव मानव की आँखों में, काँटा बन बन कर नहीं खले

अन्याय मिटे, अज्ञान घटे ममता- समता का दीप जले

इस शूल बिंधे से मधुबन में, सुनसान खिले विरान खिले ।


हे माधव ! ऐसी धुन हो

तप रहे रेत के सीने पर, शीतल नदिया का तीर बहे

जो बुझा सके अँगारों को, धरती पर कोमल प्रीत बहे।


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