मेरे कृष्णा से
मेरे कृष्णा से
मन मोहन !
तेरे मधुबन में बस पतझड़ का ही है संसार
इस मर्मर सी वीणा के सब टूटे टूटे से हैं तार ।
प्यासी-प्यासी सारी धरती, दलदल में भी है अँगार
कहाँ गई मुरलीधर ! तेरी मुरली में सब सुख का सार ।
हे बनवारी ! स्वर साधो
स्वर साधो, जिसकी ताकत से एक जादू की आवाज़ उठे
स्वर साधो जो इस सृष्टि की वीणा पर मंगल साज उठे ।
हे वंशीधर ! वंशी तेरी, माँझी हर मंझधार का,
धुन तू कोई जगा, जगत के सपनों के आधार का।
ओ यदुनन्दन ! तान सुना, स्वर धार तनिक लहराने दे
इस महातिमिर की बेला में, प्रभात किरण मुस्काने दे ।
मानव मानव की आँखों में, काँटा बन बन कर नहीं खले
अन्याय मिटे, अज्ञान घटे ममता- समता का दीप जले
इस शूल बिंधे से मधुबन में, सुनसान खिले विरान खिले ।
हे माधव ! ऐसी धुन हो
तप रहे रेत के सीने पर, शीतल नदिया का तीर बहे
जो बुझा सके अँगारों को, धरती पर कोमल प्रीत बहे।
