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Pathik Rachna

Inspirational Tragedy

5.0  

Pathik Rachna

Inspirational Tragedy

श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

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कैसे लिखूँ कलम से

वीरों की कुर्बानी

लाल लहू की स्याही

कैसे लिखे कहानी।


हर रोज खेलते आतंकी

निर्दोष खून की होली

हर बार चला करती सरहद से

कुछ शहीद की डोली।


देह माँस के बिखरे-बिखरे

चिथड़ों में से

सिर किसका !

सीना किसका !

पहचाने कैसे।


टुकड़े शरीर के आते हैं

खूनी घाटी से चुनकर

और पत्थर की हो जाती है

विधवा शहीद की सुनकर।


कैसे चूमे मैया !

हाय बेटे का मुखड़ा

झंडे में लिपटा शरीर !

या है वह टुकड़ा।


किसकी गोदी बच्चे

पापा कह कर झूले

नहीं रहे कैसे वह

अपना यह दुःख भूलें।


चूड़ियाँ तोड़ कर रोती है

वधुएँ विधवा होती हैं

बेटों की याद लिए पल-छिन

माँ सिसक-सिसक रोती है।


डूबा करती है बहनों की

राखियांँ लहू के धारे में

विद्रोह उबलने लगता है

तब इंकलाब के नारे में।


बड़े अभिमान की है बात

तिरंगे का कफन होना

सदा जीना देश के हित

देश के लिए दफन होना।


मशालें जल उठी देखो !

शहीदों की चिताओं से

ये वादा है वतन का आज

हर रोते पिताओं से।


नहीं बलिदान उनका व्यर्थ होगा

बँटे भारत ! नहीं दुश्मन समर्थ होगा

वह चाहे अनगिनत कर ले जतन

न हारा था ना हारेगा कभी अपना वतन।।


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