किस मिट्टी की वो वीणा गूंज है..
किस मिट्टी की वो वीणा गूंज है..


किस मिट्टी की वो वीणा गूंज है..
सुबह के उजाले में छिपता वो कैसा पूंज है..
मयुर की तानें मुंडेरों से निकलती..
धरा के वाशिन्दों में छाया जो धुंध है..
किस मिट्टी की वो वीणा गूंज है..
मंदिर के घड़ी घंटों की टन टन..
निकलते अजानों की पौ फट सन सन..
गिरजा भी गाते.. गुरुद्वारे सजाते..
खुद में समाते ये किसका रुंज है..
किस मिट्टी की वो वीणा गूंज है..
सुबह के उजाले में छिपता वो कैसा पूंज है।