रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई
एक तलवार उठी
कई सर कलम कर गई।
अपनों के ही षड्यंत्र से
हवन की आहुति बन गई।
बेडियाँ तोड़ने आई थी।
दुश्मनों की बिगुल बजा गई।
आजादी का बीज बोकर।
वजूद का महत्व समझा गई।
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शौर्य वीरता की आंधी थी।
बुद्धि में बलिहारी थी।
अस्त्र-शस्त्र के साथ लड़ी थी।
वीरांगना की दीवाली थी।।
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अपनी सांसे छोड़ गई
औरों की उम्र बढ़ाने को।
बेड़ियों की महाकाल बनी।
हर कड़ी घटाने को।
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बेड़ियां जब नहीं भाई।
मैदान में दौड़ आई।
एक ही नहीं थी।
जिसने यह बिगुल बजाई।
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स्वतंत्रता की मुहिम जारी थी।
की भरपूर तैयारी थी।
तलवार बन उतर आई।
परिस्थितियां उसने सुधारी थी।
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चुनौती भरी जवानी थी।
इतिहास बनाने आई थी।
दासत्व कभी न स्वीकारी थी।
वह तो तीर भाल कटारी थी।
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अर्जुन की आंख बन छाई थी।
रानी इतिहास बनाने आई थी।
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चिंगारी बन आई थी।
ज्वाला का काम कर गई।
हर एक के सीने में।
स्वतंत्रता लिखकर गई।
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तन-मन दिया।
देश की खातिर
सर्वस्व दिया।
गद्दारों ने लेकिन
षड्यंत्र किया।
रानी को हवन का
आहूत कर दिया।
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उल्टे पासे सीधे करती गई।
आजादी की प्रहरी बन
स्वतंत्रता का जुनून भरती गई।
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