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Vinayak Ranjan

Abstract

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Vinayak Ranjan

Abstract

और कितने अभिनाट्यों में हैं हम

और कितने अभिनाट्यों में हैं हम

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एक दुरह अंत; और कितने अभिनाट्यों में हैं हम।

गरिष्ठ, पौष्टिक या स्फटिक; फिर भी हैं कितने कम।

छायावादिता से परे एक संपूर्ण साकार..

कितने ही निष्ठुर, आतुर और व्यभिचार।

बन जाता हूँ एक छाया-छत्र को लिए.. छत्रपति।

आधिपत्य सा जीवन; कटु-सत्यों के अधीन..

बन जाता एक क्षणिक अधिपति।

सत्य अन्वेषण के विद्या-सागर का विद्यापति..

माथे पे तिलक जन्म-सुशोभित..

मान-मर्यादाओं का शीशपति।

..और कितने अभिनाट्यों में हैं हम!!


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