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Vinayak Ranjan

Abstract Action Classics

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Vinayak Ranjan

Abstract Action Classics

क्योंकि तुम हो

क्योंकि तुम हो

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हाँ.. मैं अपनी गलियों से निकल एक शहरनुमा

आर्ट गैलरी में गुम हो जाता हूँ.. क्योंकि तुम हो।

निकलते वक्त दिन के उजालों में तो कभी रात के

सन्नाटों में खो जाता हूँ.. क्योंकि तुम हो।


रास्तों में चलते कहीं मंदिर चर्च व मजार जो दिख जाते अगर..

तो शीष झुकाऐ आगे बढ जाता हूँ.. क्योंकि तुम हो।

हरे भरे नजारे पत्ते व फूल मानों नए ऋंगार में

हर दिन सजते से दिखते हैं अगर.. क्योंकि तुम हो।


चिड़ियों की चहचहाहट जो एक ब्रश स्ट्रोक सी कानों पे पड़ती..

तो पल में चौंक सा जाता.. क्योंकि तुम हो।

कभी साहित्य के पन्नों.. कविताओं व अनगिनत लेखों में

खुद को ही ढूंढने सा लगता हूँ.. क्योंकि तुम हो।


जाने अनजाने कोई मुझसे ही कुछ जान लेता..

और मैं भी किसी से.. क्योंकि इस ज्ञानार्जन में भी तुम हो।

रहस्यों से भरी इस दुनियां में थोड़ा पुराण तो बने कुरानों का

मनु ज्ञान ले पाता.. क्योंकि जीवन निष्कर्ष पे तुम हो।


कुचक्रों से भरे कालचक्र के नए दौर में.. कुछ रोता और

कुछ रुलाता भी हूँ.. क्योंकि कलियुगी कालिकेय भी तुम हो।

जीवन जीतना लगता जाग्रत उतना ही निद्रा में लीन..

फिर ये जीतना भरा सा दिखता उतना ही मलिन.. की तुम हो।


छुपे छिपते हर एक दर्प का अर्पण.. सुहाना साथ निभाता जाता है..

क्योंकि एक आर्ट गैलेरी सी ‘दर्पण’ जो तुम हो।


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