बात नहीं होगी अब रण होगा
बात नहीं होगी अब रण होगा
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हे कृष्ण! उठाओ सुदर्शन,
हे शिव! केश खोलो,
मौन तोड़कर अपना,
हे राम! आज बोलो,
धर पग छाती पर रिपु के,
दुर्गा! प्रहार करो,
युगों युगों तक काँपे धरती,
काली! ऐसा संहार करो।
वीभत्स होगा, प्रचंड होगा,
रक्तरंजित ये कालखंड होगा,
काटेंगे शीश, रक्त की धार बहेगी,
शत्रु सेना अब प्रहार सहेगी,
भयभीत इस धरा का हर कण होगा,
नाचेगा काल, प्राण हरण होगा,
जीवन नहीं होगा अब मरण होगा,
बात नहीं होगी अब रण होगा।