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रूपेश श्रीवास्तव 'काफ़िर'

Tragedy

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रूपेश श्रीवास्तव 'काफ़िर'

Tragedy

मन का दीप जला लेना

मन का दीप जला लेना

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बूढ़े हाथों से अपने मिट्टी के दीये बनाएं हैं,

उनके बच्चों ने भी सुनहरे सपने सजाएं हैं,

कुछ दीये मोल लेकर उनके सपने सजा देना,

मन का दीप जला लेना, मन का दीप जला लेना।


नन्हे-नन्हे हाथों से अपने माला गूंथकर रखती है,

आने-जाने वाले खरीदारों को उम्मीद से वो तकती है,

कुछ माला कुछ फूल लेकर उसकी उम्मीद जगा देना,

मन का दीप जला लेना...


रंग-बिरंगे खिलौने लेकर बूढ़ी काकी बैठी है,

हाथ जोड़कर लेलो लेलो बाबू भईया कहती है,

कुछ मिट्टी के खिलौने लेकर उसका शोक मिटा देना,

मन का दीप जला लेना...


जगमगाते घरों के मध्य एक झोपड़ी अंधेरी है,

रोशनी के इस पर्व पर भी उनकी पीड़ा गहरी है,

कुछ दीये जलाकर उनका घर-आंगन दमका देना,

मन का दीप जला लेना...

मन का दीप जला लेना...

मन का दीप जला लेना।


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