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रूपेश श्रीवास्तव 'काफ़िर'

Abstract Drama

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रूपेश श्रीवास्तव 'काफ़िर'

Abstract Drama

खेल पुराना चल रहा है

खेल पुराना चल रहा है

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षड्यंत्र नया पल रहा है, 

देख जमाना उबल रहा है, 

खेलने वाले नये सही, 

पर खेल पुराना चल रहा है।


रात अंधेरी छाई है, 

हर तरफ गहरी खाई है, 

बचकर कौन निकला है, 

किसकी ये परछाई है, 

धधकता सूरज ढल रहा है, 

पर खेल पुराना चल रहा है।


बढ़ती हुई बेकारी है, 

युवाओं में लाचारी है, 

देखे कौन पीड़ा इसकी, 

जनता तो बेचारी है, 

स्वप्न हमारा जल रहा है, 

पर खेल पुराना चल रहा है।


सड़कों पर दंगाई है, 

बाजारों में महंगाई है, 

कचरे में से रोटी लेकर, 

देखो बूढ़ी औरत खाई है, 

तूफान कहाँ संभल रहा है, 

पर खेल पुराना चल रहा है।


उठा पटक का दौर है, 

किसके सर पर मौर है, 

पाने वाला और सही, 

पर करने वाला और है, 

जो बोया सो फल रहा है, 

पर खेल पुराना चल रहा है।



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