आज
आज
हर क्षण इस जीवन का, उत्सव सा मनाना है
सांसों का धागा कच्चा है जाने कब छूट जाना है।
हर पल एक जश्न हो, यूं जीवन को बिताना है
सुख दुख तो दोनो साथी है, रहता इनका यूं ही आना जाना है।
मिथ्या है यह भाव कि, आने वाला कल सुनहरा है
जो आज को ना जी पाया, उसके लिए कल भी न ठहरा है।
धुंधलाया-सा, धूमिल-सा भावी पल है
भूत का प्रतिबिंब, सीमाहीन विकल है
अतल सागर सा वर्तमान, चिर उत्सव का प्रहरी है
शत युगों का सार, स्मित अनुरागी
"आज " की अमित छाप गहरी है।
